भगवान नृसिंह जयंती

नृसिंह जयंती को पद्म पुराण और स्कंद पुराण में नृसिंह चतुर्दशी के रूप में संदर्भित किया गया है। नृसिंह की पूजा दक्षिण भारत में सहस्राब्दियों से मौजूद है, पल्लव राजवंश ने इस संप्रदाय और इसकी प्रथाओं को लोकप्रिय बनाया। विजयनगर साम्राज्य के समय के इस अवसर का जिक्र करते हुए शिलालेख भी पाए गए हैं

 पौराणिक आधार:

नृसिंह जयंती का वर्णन पद्म पुराण, स्कंद पुराण, और विष्णु पुराण सहित कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यह पर्व वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है — जिस दिन भगवान विष्णु ने अपने चतुर्थ अवतार नृसिंह के रूप में प्रकट होकर, अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और अत्याचारी पिता हिरण्यकश्यप का वध किया। हिरण्यकश्यप ने वरदान से प्राप्त शक्तियों के कारण यह सोच लिया था कि वह अमर है। भगवान ने दिन में, रात में; भीतर, बाहर; मानव, पशु; और किसी अस्त्र से वध की जो शर्तें थीं — उन सभी को तोड़ते हुए स्तंभ से प्रकट होकर, सिंह-मानव रूप में उसका नाश किया। इस अवतार को उग्र लेकिन न्यायकारी रूप माना जाता है।

 महत्त्व:

नृसिंह जयंती धर्म की पुर्नस्थापनाऔर भक्ति की रक्षा का प्रतीक पर्व है। यह दिन बताता है कि ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकते हैं। भगवान नृसिंह का स्वरूप दर्शाता है कि जब अधर्म अपने चरम पर होता है, तो दैवी शक्ति स्वयं अवतरित होकर उसे समाप्त करती है। इस दिन उपवास, हवन, मंत्र-जाप एवं नृसिंह चालीसा का पाठ विशेष फलदायी होता है। मंत्र का जाप भय, बाधा, रोग और नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। नृसिंह जयंती केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि यह विश्वास, सुरक्षा और ईश्वर के न्याय की जीवंत मिसाल है।

खास पूजन विधि

भगवान नृसिंह हवन
प्रह्लाद–नृसिंह संवाद कथा श्रवण व पूजा
दीपदान एवं ब्राह्मण सेवा
संकट नाशक तंत्र पूजा
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