गुप्त नवरात्रि पूजा

संस्कृत नाम: गुप्त नव-रात्रि
प्रचलन: विशेष रूप से तांत्रिक साधना और आंतरिक साधकों में
काल: माघ और आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

गुप्त नवरात्रि की पूजा पद्धति भारत के प्राचीन तांत्रिक परंपराओं से जुड़ी है। इसका उल्लेख देवीभागवत, काली तंत्र, शक्ति संप्रदाय और अन्य तंत्र ग्रंथों में मिलता है। यह पर्व विशेष रूप से उन साधकों के लिए है जो देवी के गूढ़ स्वरूपों – दस महाविद्याओं की उपासना करना चाहते हैं।

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, तंत्र साधना का उत्कर्ष काल गुप्त वंश, पाल वंश और कश्मीर के त्रिक संप्रदाय के काल में देखा गया। गुप्त नवरात्रि उसी परंपरा का हिस्सा है जो भीतर की साधना, शक्ति जागरण, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनाई जाती थी।

पुराणों और तंत्र ग्रंथों में माँ दुर्गा के दस गुप्त स्वरूप – दस महाविद्याएँ – का उल्लेख आता है:
काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।

इन रूपों की पूजा मुख्यतः गुप्त नवरात्रि में की जाती है, और इनसे विशेष सिद्धियों की प्राप्ति मानी जाती है।
इन महाविद्याओं की साधना से आत्मबल, भय नाश, रोग मुक्ति, शत्रु विनाश, वाणी सिद्धि, और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है।

महत्त्व:

गुप्त नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना काल है।

  • यह समय तांत्रिक साधकों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

  • इस दौरान मंत्र-जप, हवन, रात्रि साधना, स्वाध्याय, और नवरात्रि व्रत करना बहुत पुण्यकारी माना गया है।

  • यह पर्व दिखाता है कि माँ दुर्गा केवल सौम्य नहीं, बल्कि उग्र और रक्षक रूपों में भी अपनी कृपा बरसाती हैं।

  • उपवास, नवार्ण मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) का जाप, और सप्तशती पाठ विशेष फलदायी होते हैं।

गुप्त नवरात्रि इस बात की प्रतीक है कि ईश्वर की शक्ति भीतर भी है और बाहर भी – आवश्यकता है उसे जानने, समझने और साधना के द्वारा जागृत करने की।

गुप्त नवरात्रि पूजा

नवचंडी पूजा
दुर्गा सप्तशती पूजा
देवी चामुंडा
जाप + अनु्ष्ठान + हवन
दस महाविद्या
हवन + अनु्ष्ठान + जाप
माँ बगलामुखी पूजा
देवी अथर्वशीर्ष पाठ
अष्ट लक्ष्मी पूजा
देवी कात्यायनी
जाप + अनु्ष्ठान + हवन
श्री यंत्र पूजा
देवी कवच पाठ
वाल्मीकि सुंदरकांड पाठ
रामरक्षा स्तोत्र पाठ
वाल्मीकि सुंदरकांड पाठ
64 योगिनी
जाप + हवन
काल भैरव हवन
महामृत्युंजय अनु्ष्ठान
सुदर्शन कवच
सुंदरकांड
कृष्णकल्प
जाप + हवन
भैरव दीप दान
गौरी गणेश पूजा
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